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Why Hindu Rashtra?

Instead of discussing which religion is right or wrong, we need to discuss the impact of a religion on our society because at the end, that's the most important aspect of it for human civilization. Starting with Hinduism. Freedom is the foundation and essence of Hinduism. Hinduism accepts everyone from theist to atheist, from Shankaracharya to Charvaka. No one is left out or punished for speaking their mind. Whereas people are also free to follow or criticize any thought verbally without violating other's freedom by force or violence. Hinduism is non-violent, secular and all inclusive religion by design.

polytheistic religion

In Hinduism, all beliefs are accepted. Hindus believe that God is in every bit of this universe, that means God can be formless or can have any form. This brings diverse set of beliefs and practices within Hinduism. Thus, Hindus love their belief but also respect other's beliefs as well. This welcoming mindset is only possible in a polytheistic religion like Hinduism, because Hindus have freedom to believe in anything and that's why no one is enemy in the eyes of Hindus. That clearly means Hinduism is a 'Religion of Freedom' in its truest sense, contrary to the enclosed monotheistic religions. This diversity also brings disadvantage in our society as lack of unity among Hindus.

monotheistic religion

Abrahamic religions are monotheistic in nature and in monotheism, only one belief is the truth and all other beliefs are considered to be false. So for the Abrahamic religions, society is divided into believers and non-believers. So it's natural for their followers to have a tendency to diminish or destroy the beliefs which they consider false. In other words, followers of Abrahamic religions are programmed to kill or convert others from different religions. This anti-social mindset is only possible in monotheistic religions like Islam and Christianity, because Abrahamic religions don't embrace freedom of beliefs but instead their belief divides the society and in their eyes, all the non-believers are their enemy. That force humans to have conflicts among each other. Thus, monotheism leads any diverse society to violence.

Although monotheistic religions can have peace, if they have their own country. But monotheistic religions shouldn't be allowed to get mixed with any different monotheistic or polytheistic society, as it will inevitably bring social unrest and violence in the society because they see others as their enemy. Europe for example, some countries now having issues after accepting Muslim immigrants, because Muslims immigrants don't see native Christians as their friends and vice-versa. Second example is Pakistan and Bangladesh where Hindus are getting destroyed by Muslims just for being Hindu, because native Muslims don't see Hindus as friends whereas Hindus blindly believe everyone as their friends. Third example can be taken from history of Iran, where native Persians got absolutely destroyed by Muslims and Persians were forced to leave their own country to save their lives. Monotheistic religions seek to have their own religion based countries. Multiple Christian and Muslim countries already exists in this world because they can't live with others, and there are also some attempts are underway. For example, demand for new Christian country between Bhaarat and Myanmar.

Kanhaiyalal Killers

Conclusion is, not every religion is equal and the slogan for 'beheading' ('sar tan se juda') by Muslims is a wake-up call for all Hindus. After the religion based partition of Bhaarat in 1947, the single greatest blunder by Hindus was to remain secular and allowed Muslims to stay in Bhaarat with equal rights, after Muslims snatched their own exclusive land where Hindus do not have equal rights. That clearly shows that we as Hindus failed to recognize the enemies of our diverse society and also paved the path for future violence as well, like Exodus of Kashmiri Hindus in 1990 and Gujrat riots in 2002 etc. Bhaarat should never accept any belief system which produces anti-social elements in the name of religion. Any belief system which is against Life, Freedom or diverse society, should be discarded immediately.

From the security point of view, we need our nation without Abrahamic religions, where Hindus can live and express themselves without fear. Hindus are blinded by their own beliefs and consider everyone as their friends. But it's time for Hindus to come out of this mindset and should get ready to defend themselves against the inevitable upcoming violence. Hindus should not repeat this blunder of being secular again and ban the enemies of free and diverse society. We need huge public support to ban Abrahamic religions. So make sure to trend #Ban_Abrahamic_Religions with #Rashtra4Hindu in social media every day.

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हिन्दू राष्ट्र क्यों?

कौन सा धर्म सही है या गलत, इस पर चर्चा करने के बजाय हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि किसी सम्प्रदाय का हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है, क्योंकि मानव सभ्यता के लिए यही इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। अगर हिंदू धर्म से शुरू करें तो स्वतंत्रता हिंदू धर्म का आधार और सार है। हिंदू धर्म आस्तिक से लेकर नास्तिक तक, शंकराचार्य से लेकर चार्वाक तक सभी को स्वीकार करता है। किसी को भी अपनी बात कहने के लिए बाहर नहीं रखा जाता या दंडित नहीं किया जाता। जबकि लोग भी मौखिक रूप से किसी भी विचार को मानने या उसकी आलोचना करने के लिए स्वतंत्र हैं, बलपूर्वक या हिंसा के द्वारा नहीं। हिंदू धर्म अहिंसक, धर्मनिरपेक्ष और सभी को साथ लेकर चलने वाला धर्म है।

polytheistic religion

हिंदू धर्म में सभी मान्यताओं को स्वीकार किया जाता है। हिंदू मानते हैं कि ईश्वर इस ब्रह्मांड के कण-कण में है, यानी ईश्वर निराकार भी हो सकता है या उसका कोई रूप भी हो सकता है। इसलिए हिंदू धर्म में विश्वास और प्रथाओं की विविधता है। हिंदू अपने विश्वास पर श्रद्धा करते हैं लेकिन दूसरों के विश्वासों का भी सम्मान करते हैं। ऐसी मैत्रीपूर्ण मानसिकता हिंदू धर्म जैसे बहुऐश्वरवादी धर्म में ही संभव है, क्योंकि हिंदुओं को किसी भी चीज़ पर विश्वास करने की स्वतंत्रता है और इसीलिए हिंदुओं की नज़र में कोई भी दुश्मन नहीं है। इसका स्पष्ट अर्थ है कि हिंदू धर्म सच्चे अर्थों में 'स्वतंत्रता का धर्म' है, जो कि सीमित एकेश्वरवादी सम्प्रदायों के विपरीत है। इस विविधता के कारण हिन्दू समाज में एकता की कमी भी रहती है।

monotheistic religion

अब्राहमिक सम्प्रदाय प्रकृति में एकेश्वरवादी हैं और एकेश्वरवाद में केवल एक विश्वास ही सत्य है और अन्य सभी विश्वासों को मिथ्या माना जाता है। इसलिए अब्राहमिक सम्प्रदायों के लिए, समाज विश्वास करने वालों और काफ़िरों में विभाजित हो जाता है। अतः उनके अनुयायियों के लिए उन विश्वासों को नुकसान पहुंचाने या नष्ट करने की प्रवृत्ति होना स्वाभाविक है जिन्हें वे मिथ्या मानते हैं। दूसरे शब्दों में, अब्राहमिक सम्प्रदाय के अनुयायी दूसरे धर्मों के लोगों को मारने या धर्मांतरित करने के लिए प्रोग्राम हैं। यह असामाजिक मानसिकता केवल इस्लाम और ईसाई जैसे एकेश्वरवादी सम्प्रदायों में ही संभव है, क्योंकि अब्राहमिक धर्म विश्वास करने की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं करते हैं। बल्कि उनका विश्वास समाज को तोड़ता है, क्योंकि उनकी नज़र में सभी काफ़िर उनके दुश्मन हैं। इस प्रकार का विश्वास मनुष्यों को आपस में संघर्ष करने के लिए मजबूर करता है जिसके परिणामस्वरूप लोगों के बीच लड़ाई होती है। स्पष्ट है कि एकेश्वरवाद एक विविध समाज को हिंसा की ओर ले जाता है।

वैसे तो एकेश्वरवादी सम्प्रदायों में भी शांति हो सकती है, अगर उनका अपना देश हो। लेकिन एकेश्वरवादी धर्मों को किसी दूसरे एकेश्वरवादी या बहुऐश्वरवादी समाज के साथ घुलने-मिलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि इससे समाज में अशांति और हिंसा निश्चित रूप से आएगी, क्योंकि वे दूसरों को अपना दुश्मन मानते हैं। उदाहरण के लिए यूरोप, कुछ देशों में अब मुस्लिम प्रवासियों को स्वीकार करने के बाद समस्याएँ आ रही हैं, क्योंकि मुस्लिम आप्रवासी और ईसाई मूल निवासी एक दूसरे को अपना मित्र नहीं मानते। दूसरा उदाहरण पाकिस्तान और बांग्लादेश है, जहाँ हिंदू सिर्फ़ हिंदू होने के कारण मुसलमानों द्वारा नष्ट किए जा रहे हैं, क्योंकि मूल मुस्लिम हिंदुओं को मित्र नहीं मानते, जबकि हिंदू आँख मूंदकर सभी को अपना मित्र मानते हैं। तीसरा उदाहरण ईरान के इतिहास से लिया जा सकता है, जहाँ मूल पारसी मुसलमानों द्वारा पूरी तरह से नष्ट कर दिए गए और पारसिओं को अपनी जान बचाने के लिए अपना देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। एकेश्वरवादी अपने सम्प्रदाय आधारित देश चाहते हैं। इस दुनिया में पहले से ही कई ईसाई और मुस्लिम देश मौजूद हैं, क्योंकि वे दूसरों के साथ नहीं रह सकते, और कुछ प्रयास भी चल रहे हैं। उदाहरण के लिए, भारत और म्यांमार के बीच एक नए ईसाई देश की मांग।

Kanhaiyalal Killers

निष्कर्ष यह है कि सभी धर्म या सम्प्रदाय समान नहीं है और मुसलमानों द्वारा 'सर तन से जुदा' का नारा सभी हिंदुओं के लिए एक चेतावनी है। 1947 में भारत के धर्म के आधार पर विभाजन के बाद, हिंदुओं द्वारा धर्मनिरपेक्ष बने रहना और मुसलमानों को समान अधिकारों के साथ भारत में रहने देना सबसे बड़ी गलती है, जबकि मुसलमानों ने अपनी विशेष भूमि छीन ली, जहाँ हिंदुओं को समान अधिकार नहीं हैं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि हम हिंदू अपने समाज के दुश्मनों को पहचानने में विफल रहे, जो हिंदुओं को धीरे-धीरे नष्ट कर रहे हैं। इस गलती कि वजह से भविष्य की हिंसा के लिए भी मार्ग प्रशस्त हुआ, जैसे 1990 में कश्मीरी हिंदुओं का पलायन और 2002 में गुजरात दंगे। भारत को किसी भी ऐसी विश्वास प्रणाली को कभी भी स्वीकार नहीं करना चाहिए जो धर्म के नाम पर असामाजिक तत्वों को जन्म देती है। कोई भी विश्वास प्रणाली जो जीवन, स्वतंत्रता या समाज विरोधी है, उसे तुरंत त्याग दिया जाना चाहिए।

सुरक्षा के दृष्टिकोण से, हमें अब्राहमिक सम्प्रदायों से मुक्त राष्ट्र की आवश्यकता है, जहाँ हिंदू बिना किसी भय के रह सकें और अपनी बात उठा सकें। हिंदू अपनी मान्यताओं में अंधे हैं और सभी को अपना मित्र मानते हैं। लेकिन अब हिन्दुओं को इस मानसिकता को त्यागना होगा और भविष्य में होने वाली हिंसा से खुद को बचाने के लिए तैयार करना होगा। हिंदुओं को फिर से धर्मनिरपेक्ष होने की यह गलती दोहरानी नहीं चाहिए और स्वतंत्र व विविधतापूर्ण समाज के दुश्मनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। अब्राहमिक सम्प्रदायों पर प्रतिबंध लगाने के लिए हमें भारी जन समर्थन की आवश्यकता है। इसलिए प्रतिदिन सोशल मीडिया पर #Ban_Abrahamic_Religions के साथ #Rashtra4Hindu को ट्रेंड करें।

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